अगर आप वेल्डिंग की दुकान पर गए हो तो आपने देखा होगा जब दो लोहे के टुकड़ों को जोड़ना होता है तो उसके लिए एक अन्य कम गलनांक वाले एक रॉड का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी सहायता से दोनों लोहे के टुकड़ों को जोड़ा जाता है।
वेल्डिंग मशीन द्वारा उस रोड में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है और वह राड गलने लगता है जो उन दोनों लोहे की जमकर एक टांके का काम करता है। इस प्रकार हुआ दोनों लोहे के टुकड़े आपस में जुड़ जाते हैं और इस प्रक्रिया को हम वेल्डिंग कहते हैं
ठीक इसी प्रकार इलेक्ट्रिक बोर्ड में टांका लगाने के लिए अथवा तार के दो टुकड़ों को अच्छी तरह से जुड़ने के लिए सोल्डरिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में कम गलनांक वाले मिश्र धातु को जो प्रायः सीसा और टिन से बना होता है सोल्डरिंग आयरन की मदद से दोनों तारों के ऊपर लगाया जाता है।
यह मिश्र धातु उन दोनों तारों के ऊपर फैल जाता है और ठंडा होकर उन पर टांके का काम करता है। इस प्रकार दोनों तार आपस में अच्छी तरह से जुड़ जाते हैं और धारा का प्रवाह शुद्ध रूप से होता है। इस प्रक्रिया को सोल्डरिंग कहते हैं।
दोस्तों आज के इस आर्टिकल में बात करेंगे सोल्डरिंग प्रक्रिया के बारे में जिसमें हम जानेंगे सोल्डिंग क्या होती है, सोल्डरिंग में कौन कौन से धातु का इस्तेमाल किया जाता है और सोल्डरिंग का प्रोसेस कैसे होता है। इसके अलावा सोल्डरिंग से जुड़े और भी महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करेंगे तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़िए अगर आप सोल्डरिंग के बारे में अच्छे से जानना चाहते हैं।
सोल्डरिंग क्या है ?
“दो धातुओं को किसी तीसरे अन्य धातु की सहायता से जोड़ने की प्रक्रिया को सोल्डरिंग कहते हैं।” जैसे यदि तांबे के दो तारों को जोड़ना हो तो इन्हें जोड़ने के लिए इलेक्ट्रिक आयरन की मदद से शीशे और टिन के मिश्रण से बने मिश्र धातु के तार को गला कर उन दोनों तारों के ऊपर लगा दिया जाता है जिससे यह दो तार आपस में जुड़ जाते हैं।
सोल्डिंग प्रक्रिया में धातु को जोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाले मिश्र धातु का गलनांक अन्य दोनों तारों से कम होता है। इसका कारण यह है कि यदि मिश्र धातु का गलनांक इन दोनों तारों के गलनांक से अधिक होगा तो अन्य दोनों तारों को यह गला देगा और दोनों तार जुड़ नहीं पाएंगे। इसीलिए मिश्र धातु का गलनांक अन्य दोनों तारों से कम रखा जाता है।
यह मिश्र धातु अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं इनको बनाने में अलग अलग धातु को इस्तेमाल किया जा सकता है जिन का गलनांक कम या ज्यादा हो सकता है।
सोल्डरिंग के प्रकार
सोल्डरिंग कई प्रकार की होती है यह इस बात पर निर्भर करती है कि किस सोल्डिंग प्रक्रिया में कौन से मिश्र धातु का इस्तेमाल किया गया है।
- कठोर सोल्डर
- नरम सोल्डर
- फ्लक्स
कठोर सोल्डर
कठोर सोल्डिंग का इस्तेमाल मुख्य रूप से सोना, चांदी, पीतल और तांबा आदि को जोड़ने में इस्तेमाल किया जाता है। इसे कठोर सोल्डरिंग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसे जुड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मिश्र धातु नरम सोल्डिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले मिश्र धातु से अधिक कठोर होता है।
कठोर सोल्डिंग की प्रक्रिया में इस्तेमाल किए जाने वाले मिश्र धातु को ब्लोटार्च कहते हैं। जिसका गलनांक शीशे और टिन से बने धातु के मिश्र धातु से अधिक होता है।
ब्लोटार्च को कई अलग अलग नाम से बुलाया जाता है जैसे ब्यूटेनटार्च , प्रोपेनटार्च आदि। यह टॉर्च ब्यूटेन अथवा प्रोपेन गैस को हवा के संपर्क में लाकर उसे जलाने में मदद करता है। इसमें ब्यूटेन अथवा प्रोपेन गैस को एक निश्चित प्रेशर पर भर दिया जाता है जो तरल पदार्थ के रूप में टॉर्च में भर जाता है।
और जैसे ही प्रेशर के द्वारा इसे बाहर निकाला जाता है यह गैस में बदल जाता है और हवा के संपर्क में आने से इसमें आग लग जाती है। जिससे हम सोना, चांदी, पीतल और भी कई धातुओं को जोड़ने में इस्तेमाल करते हैं।
नरम सोल्डर
नरम सोल्डिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में किया जाता है यदि किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मदरबोर्ड में किसी प्रकार का जोड़ लगाना है तो वहां पर इसका इस्तेमाल किया जाता है या तारों को जुड़ने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
कठोर सोल्डरिंग की तुलना में इनका जोड़ नरम होता है और अधिक कंपन होने पर यह जोड़ टूट भी जाता है। इसमें मुख्य रूप से सीसा और टिन से बना हुआ मिश्र धातु का इस्तेमाल किया जाता है। इस का गलनांक कम होता है।
यदि गलनांक को बढ़ाना है तो एंटीमनी और घटाना है तो बिस्मिथ का इस्तेमाल किया जाता है। मतलब यदि एंटीमनी की मात्रा बढ़ा दी जाए तो मिश्र धातु जल्दी गलने लगेगा और बिस्मिथ की मात्रा बढ़ाने पर इसकी कठोरता बढ़ जाएगी।
फ्लक्स
सोल्डरिंग करते समय ऑक्साइड की एक परत धातु के चारों तरफ जम जाती है जिसे हटाने के लिए एक अधात्विक मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है। इस मिश्रण को फ्लक्स कहते है। फ्लक्स तरल और पेस्ट की अवस्था में पाया जाता है।
- Water-soluble fluxes– ये फ्लक्स पानी में घुल जाते है इसलिए इन्हे तरल फ्लक्स की श्रेणी में रखा जाता है। केवल पानी में डालने मात्रा से ही ये फ्लक्स साफ़ हो जाते हैं।
- No-clean fluxes– ये फ्लक्स अचालक होते हैं इनसे किसी भी प्रकार के शार्ट-सर्किट होने का खतरा नहीं रहता है इसलिए इसलिए इन्हे हटाने की ज़रूरत नहीं होती है। हालाँकि ये फ्लक्स भी दूसरे फ्लक्स की तरह सफेद रंग का निशान छोड़ते हैं। यदि यह निशान किसी अन्य कनेक्शन तक एक मोटी परत बनाते हैं तो इन्हें हटा देना चाहिए अन्यथा नुकसानदायक नहीं होते।
- Rosin fluxes– इसे आम भाषा में सोल्डर फ्लक्स कहते हैं यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला फ्लक्स है। यह फ्लक्स तीनों अवस्था में पाया जाता है , चालक, अचालक और अर्धचालक। और अलग-अलग जगहों पर इसका इस्तेमाल आवश्यकता अनुसार किया जाता है।
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निष्कर्ष
इस आर्टिकल का मुख्य उद्देश्य था कि सोल्डरिंग क्या होता है इसके बारे में जानकारी दी जाए। इस आर्टिकल के माध्यम से सोल्डरिंग प्रक्रिया के बारे में और सोल्डरिंग कितने प्रकार की होती है इनके बारे में हमने बात किया। आशा करता हूं मैं आपके प्रश्नों का जवाब देने में सक्षम रहा हूंगा और आपको सोल्डरिंग प्रक्रिया के बारे में जानकारी मिल पाई होगी।
सोल्डरिंग से जुड़े सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल
सोल्डरिंग क्या है समझाइए?
दो धातुओं को आपस में किसी तीसरे धातु के सहायता से जोड़ने की प्रक्रिया को सोल्डरिंग कहते हैं। सोल्डरिंग का इस्तेमाल मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी तार के दो टुकड़ों को एक साथ जोड़ना है तो सोल्डरिंग की मदद से दोनों तारों को जोड़ दिया जाता है। अथवा किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मदरबोर्ड को बनाने में भी सोल्डरिंग की बहुत आवश्यकता पड़ती है।
सॉफ्ट सोल्डरिंग क्या है?
सोल्डरिंग कई प्रकार की होती है जिसमें से सॉफ्ट सोल्डरिंग भी एक प्रकार है यह तुलनात्मक रूप से अन्य सोल्डरिंग से थोड़ा कमजोर होता है। इसीलिए इसे सॉफ्ट सोल्डरिंग कहते हैं। सॉफ्ट सोल्डरिंग में सीसा और टिन के धातु के मिश्रण का उपयोग किया जाता है जिन्हें 63:37 के अनुपात में रखा जाता है।
सॉफ्ट सोल्डरिंग का इस्तेमाल ऐसे स्थान पर किया जाता है जहां पर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से कम रहे क्योंकि इससे अधिक तापमान होने पर यह सोल्डर पिघल जाता है मुख्य रूप से इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में किया जाता है।
सोल्डरिंग वायर का आम नाम क्या है?
आमतौर पर सोल्डरिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले वायर को रांगा के नाम से जाना जाता है हालांकि
सोल्डरिंग आयरन का तापमान कितना होता है?
सोल्डरिंग आयरन का तापमान 150 डिग्री सेल्सियस से लेकर 300 डिग्री सेल्सियस तक होता है। किस तापमान पर सोल्डरिंग आयरन पिघलने लगता है